मानसून आते ही मुंबई, दिल्ली और चेन्नई जैसे महानगर ही नहीं, बल्कि पटना,भागलपुर, वाराणसी, भोपाल जैसे छोटे शहरों के भी 'पानी-पानी' होने की खबरें सुर्खियां बनने लगती हैं। अब मानसून केवल बारिश नहीं ला रहा, बल्कि महानगरों, शहरों से लेकर कस्बों तक में बाढ़ भी ला रहा है। इससे न केवल भारी वित्तीय क्षति पहुंच रही है, बल्कि कई लोगों को हर साल जान से हाथ भी धोना पड़ता है। नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ की वजह से देश को हर साल औसतन 5,649 करोड़ रुपए और 1,654 मानव जीवन का नुकसान होता है। ऐसे में अगर हमने बाढ़ रोकने के पर्याप्त प्रबंध नहीं किए तो आने वाले सालों में बारिश से होने वाली आपदाएं देश के लिए भारी तबाही ला सकती है। शुरुआत तो हो ही गई है। जानते हैं कि आखिर देश में बाढ़ जैसे हालात क्यों बन रहे हैं और इसका क्या असर हो रहा है। 'भारी वर्षा दिवस' बढ़ रहे हैं , क्योंकि बदल रहा है मानसून का पैटर्न... सरकारी आंकड़ों और विशेषज्ञों की माने तो भारत में हर साल होने वाली मानसूनी बारिश की मात्रा में तो वार्षिक रूप से कोई खास फर्क नहीं आया है, लेकिन मानसून के स्वरूप में फर्क
Debadityo Sinha is an award-winning Indian ecologist and conservationist with a keen interest in studying the impact of law, policy, politics, and culture on conservation. He is the founder and Managing Trustee of 'Vindhyan Ecology & Natural History Foundation', and a member of IUCN Species Survival Commission- Bear Specialist Group. He is associated with Vidhi Centre for Legal Policy as a Senior Resident Fellow and leading the 'Climate & Ecosystems' team.